वो पुरुष हैं
वो पुरुष हैं
वो पुरुष हैं, वो पिता हैं
वो पुत्र हैं, वो पति हैं
वो भाई हैं, वो हर रिश्ते में हैं
क्योंकि वो पुरुष हैं
जिनसे सारे रूप हैं
वो पिता हैं, त्याग की मूरत हैं
भाई हैं तो रक्षक हैं
पति से घर संसार सुरक्षित है
गृहस्थी के स्वामी के कंधों पर
यह परिवार सुरक्षित है
वो अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं
परिवार का दायित्व उठाते हैं
त्याग की मूरत इसीलिए कहलाते हैं
अपनी सारी कमाई वो परिवार पर लुटाते हैं
अपना घर – संसार चलाते हैं
एक दिन भी चैन से नहीं सो पाते हैं
सुबह – सबेरे सबसे पहले
घर और सुकून त्याग देते हैं
शाम को घर जल्दी आनें की
कोशिशें लगातार करते हैं
लेकिन जिम्मेदारियां उन्हें रोक लेती हैं
उनसे सुख और आराम छीन लेती हैं
प्रेम मिले या परित्याग मिले
अपना कर्तव्य हर हाल में अंतिम सांस तक निभाते हैं
अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते है
दुनियाभर का विष पीकर
घर में खुशियां कैसे भी हो लेकिन लेकर ही आते हैं
वो मेरे पापा हैं जो कभी खाली हाथ नहीं आते हैं
वो बहुत कमाते हैं, लेकिन अपने लिए कुछ ख़रीद नहीं पाते हैं
पापा मेरे लिए चॉकलेट आइसक्रीम लाते हैं
लेकिन कभी ख़ुद के लिए नहीं खरीद पाते हैं
उन्हीं पैसों को बचाते हैं ताकि वो कल भी खाली हाथ न लौट सकें
अपने शौक को वो हर रोज़ मारते हैं
उनके कपड़े फटे हैं लेकिन उन्हीं कपड़ों को रोज पहनते हैं
हमारे लिए नए कपड़े हर बार दिलाते हैं
लेकिन हर बार वो अपने लिए कुछ नहीं ख़रीद पाते हैं
कर्ज़ में डूबे हुए हैं, दिनरात चिंतित रहते हैं
कुछ पैसे मेरे भविष्य के लिए बचाते हैं
कुछ पैसों से कर्ज चुकाते हैं
कई दिनों से बीमार हैं लेकिन डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं
वो आधे घंटे पहले से पैदल ही दफ़्तर को निकल जाते हैं
यहां भी कुछ पैसे बचाते हैं
यह त्याग एक दिन हर एक पुत्र करते हैं
जब वो एक पिता बनते हैं
मेरे सर पर छत हो इसीलिए वो
दिनरात मेहनत करते हैं
मेरा कल सुरक्षित हो
इसीलिए वो आज मेहनत की आग में जलते हैं
उन्हें भी समझो न
उन्हें भी अपना मानो न
उन्हें भी प्रेम और विश्वास दो न
उन्हें भी न्याय का अधिकार दो न
उन्हें भी समानता का अधिकार है
उन्हें भी न्याय की दरकार है
उन्हें भी कानून से कुछ आस है
क्योंकि वो सिर्फ़ एक पति नहीं हैं,
वो पिता भी हैं, वो पुरुष हैं
मौन रहेंगे, सब सह लेंगे लेकिन
सबसे पहले वो एक इंसान हैं
उन्हें भी प्रेम, दया, करुणा, समर्पण की आस है
_ सोनम पुनीत दुबे