वो नारी है
अग्नि की उठती ज्वाला , ढलते सूरज की लाली है,
ममतामयी माँ दुर्गा -सी कभी रुद्र वो चंडी काली है,
अबला कहते हो उसको, जो दैत्यों पर भी भारी है,
हर वीर को जिसने जन्म दिया वीरांगना वो नारी है,
गृहलक्ष्मी है कोमल- सी जंग में तलवार उठाती है,
कभी रज़िया सुल्ताना कभी लक्ष्मीबाई बन जाती है,
वो नारी है जो पुरुषों का जग में अस्तित्व बनाती है,
माँ स्वरूप पर जिसके पूरी दुनिया शीश झुकाती है
कई रूपों में खुद को ढाले ऐसी मूर्तिकार है नारी,
अबला नही समझ लेना जो दैत्यों पर भी है भारी,