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26 Jan 2022 · 1 min read

वो थी बच्चों की माँ सबसे लड़़ती रही।

गज़ल

212……212……212…..212
वो थी बच्चों की माँ सबसे लड़़ती रही।
आँख में आँसू भर मुस्कुराती रही।

कोई आये मुसीबत तो उससे लड़ें,
सारी बेटी पे खुशियां लुटाती रही।

नीति है ये चुनावों की गंदी बहुत,
झूठे सपने ही सबको दिखाती रही।

कर चुकाया था जनता ने जो देश को,
फौज नेताओं की वो उड़ाती रही।

खस्ता हालत रहे साल सत्तर गए,
देश की हर व्यवस्था बिगड़ती रही।

देश सोने की चिड़िया था अपना कभी,
बस सुनाने को ही ये कहानी रही।

देश प्रेमी थे नेता जी इक देश में,
उनसे फौजें फिरंगी भी डरती रही।

……..✍️ प्रेमी

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