वो तो इंकार कर गए
मैं कर बैठा मोहब्बत
उस रश्ते से , उन गलियों से
यूं तो दीवारें कभी नापी ना थी
उफान पर था दिल
शायद इसलिए पार कर गए।
लहजा जल्दी उठने का भी न था
वो खटकती है अब तो,
मेरी सुबह अजान से,उसकी मुस्कान से
मान लिया था मैंने उसे अपना
इसलिए प्यार कर गए।
आज उसे कह दू, जो अजीज है
यूं तो दीवारें कभी नापी ना थी
इसलिए पार कर गए
मैं कर बैठा मोहब्बत
उस रश्ते से , उन गलियों से
वो तो इंकार कर गए।