वो जिस्म बेचती है, वैश्या कहलाती है
वो जिस्म बेचती है, वैश्या कहलाती है
तो जिस्म खरदीने वाले को कोई नाम क्यों नही दिया जाता?
वो कमजोर है इसलिए उसे नोच देते हैं
फिर क्यों एक आदमी को मर्दानगी का ताज पहना दिया जाता है
घर , बाहर ,आना जाना किसी भी गली नुक्कड़ घूरता मर्द है
और बदनाम एक औरत हो जाती है
आखिर क्यों एक औरत ही वैश्या कहलाती है?
किसी से बात कर ली तो वो बदनाम हो गई
चंद पलों में ही वो सरेआम हो गई
परखा जाता है उसे कदम कदम पर
आखिर क्यों उसकी इज़्ज़त हर जगह नीलाम हो गई
बचपन हो या जवानी हर जगह अग्नि परीक्षा तैयार रहती है
क्यों नहीं समझा जाता उसकी भावनाओं को आखिर वो भी इन सवालों से थकती है,
कितनी बार वो चुप रहकर सब बात सहकर वो अपने आप को समझाती है
आखिर औरत ही इस समाज में वैश्या क्यों कहलाती है?
एक आदमी पहुंच जाता है बड़े पद पर , तैनात वो रहता है
ऊंचा रहता है नाम उसका और हर कोई फक्र उसपर करता है
गर कोई औरत आगे बढ़ना चाहती है,तो क्यों उससे सवाल किए जाते हैं
क्यों बात बात पर बवाल किए जाते है
किसी से बात करना क्यों शर्मिंदगी कहलाती है,
आखिर क्यों इन सबका बोझ वो अपने सर पर उठाती है?
वो जानती है अपने आप को ,
वो सही रास्ता चुन सकती है
वो संवार सकती है अपना भविष्य
वो एक मर्द को जन्म दे सकती है
आखिर क्यों एक औरत दबा दी जाती है
फिर से मन में उठता है यही सवाल कि एक औरत ही क्यों वैश्या कहलाती है?
मन की सुंदरता को कोई देख नहीं पाता है
यहां हर एक दिखावे में जी रहा है
ना जाने क्या बेबसी है उनकी
जो दिखावे का घूंट ही पी रहा है
बदलो नज़रिया अपने आप का
यहां सच्चाई और अच्छाई साथ चलती है
लेकिन फिर भी ना जाने
तुम्हारी नज़र में किस बात की कमी खलती है
मन की सुंदरता से होता उनके गुणों का भी बखान है
जो दूर रखे खुद को दिखावे से
वो सही मायने में इंसान है।
क्षमा चाहती हूं मेरे शब्द किसी को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं है
कुछ बातें सुनी कुछ महसूस की है
इसलिए आज मैंने ये कविता लिखी है।
रेखा खिंची ✍️✍️