वो घर घर नहीं होते जहां दीवार-ओ-दर नहीं होती,
वो घर घर नहीं होते जहां दीवार-ओ-दर नहीं होती,
आजकल सच्चाई और उसूलो की कदर नहीं होती !
घर, साज-ओ-सामान का बंटवारा हुआ तो ये जाना,
खाली बड़ा दिल रखने से, जिंदगी बसर नहीं होती !
भारी मन से रुखसती लेनी पड़ती, जबरन कई दफ़ा,
हर दफ़ा दिल-ऐ-ज़ज़्बातो में सख्ती ज़बर नहीं होती !
जिंदगी में उसके लिए भी रजामंदी दिखानी पड़ती है,
जिस बात की हमें कानों कान कोई ख़बर नहीं होती !
चेहरे पर मायूसी, कदमो में छाले, राहों में काँटे न हो,
सफर-ऐ-जिन्दगी की इतनी आसान डगर नहीं होती !
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डी के निवातिया