वो खफा है ना जाने किसी बात पर
वो खफा है ना जाने किसी बात पर
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वो खफ़ा है ना जाने किसी बात पर,
वो खड़ी है सचमुच सही बात पर।
टूट जाता बंधन ये कभी का कभी,
प्यार जिंदा है शायद उसी बात पर।
आज भी तो देखा वो छड़ी सी खड़ी,
हिल न पाई अब तक कही बात पर।
दायरा छोटा सा हो गया प्रेम का,
दूरिया बढ़ती आई वही बात पर।
देख कर भी मनसीरत रुका ही नहीं,
बिजलियाँ गिरती आई गिरी बात पर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)