वो कौन हैं
वो कौन हैं?
वे दोनों भाई-बहन आज भी सहम जाते हैं| जब उनसे पूछा जाता है कि “वो कौन हैं?”| लगभग दस साल पहले की बात है, हर रोज की तरह राजू और रीनू की स्कूल बस उनके घर के नजदीक आ कर रुकी| हमेशा की तरह सभी बच्चों के माता-पिता या संरक्षक स्नेहवश उन्हें लेने आए| राजू व रीनू की मम्मी, सुमित्रा भी उन्हें लेने आई| बस से एक-एक करके सभी छात्र उतरे और अपने परिजन संग चले गए| उस समय सुमित्रा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, जब उसके बच्चे राजू और रीनू बस से नहीं उतरे| सुमित्रा ने बस के चालक व परिचालक से अपने बच्चों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि राजू और रीनू तो छुट्टी से पहले ही स्कूल से किसी रिश्तेदार के साथ आ गए| यह सब उनकी कक्षा की इंचार्ज बता रही थी|
सुमित्रा चालक व परिचालक की बातें सुन कर पंख कटे पंछी की तरह गिर पड़ी| रोते रोते कह रही थी कि इस शहर में हमारा कोई रिश्तेदार नहीं है| पास-पड़ोस के महिला-पुरुष एकत्रित हो गए| किसी पड़ोसी ने सुमित्रा से उसके पति बलजीत का मोबाईल न.पूछ कर उसे सूचना दी| बलजीत शहर के वन विभाग के कार्यालय में डी. एफ. ओ के पद पर कार्यरत हैं| सूचना पाकर कुछ ही देर में बदहवास, सहमा हुआ बलजीत आया| आते ही अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करके अपनी पत्नी को दिलासा देने लगा| हालांकि बलजीत को अपने द्वारा दी गई दिलासा झूठी प्रतीत हो रही थी| वह पुलिस प्रशासन व सरकारी तन्त्र की लचर कार्यप्रणाली से भली-भांति वाकिफ था| वाकिफ हो भी क्यों न वह खुद भी सरकारी तन्त्र की एक इकाई है| फिर भी उसने अपनी पत्नी को आश्वस्त करने का पूरा प्रयत्न किया|
सबसे पहले स्कूल प्रबंधन से संपर्क किया गया तो वे रक्षात्मक नज़र आए| उन्होंने वही बातें कही, जो उन्हें संभावित पचड़ों से बचा सके| वे संवेदनशुन्य हो कर बलजीत से बात करते| बलजीत ने पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवाई| पुलिस-प्रशासन पर हर संभव दबाव बनाने का प्रयास किया| हर दाव-पेच लड़ाया| पैसा पानी की तरह बहाया| कभी नेताओं समक्ष गिड़गिड़ाया| कभी प्रशासन के समक्ष हाथ फैलाया| उसने वह सब कुछ किया, जो जिस-जिस ने बताया| शहर-शहर, गली-गली बच्चों की गुमशुदगी के सचित्र इश्तिहार चिपकाए गए| जिनमें बच्चे लौटाने वाले को उचित इनाम देने का वादा किया| हर रोज समाचार-पत्रों में बच्चों की गुमशुदगी का सचित्र समाचार प्रमुखता से छपवाया गया| टी. वी. के सभी चैनल्स पर, समय-समय पर बच्चों की गुमशुदगी के समाचार चलवाए गए| अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा मीडिया पर लुटाया| हालांकि बलजीत स्वभावतः अंधविश्वासी, रूढ़िवादी नहीं था| लेकिन संतान के दुख के समक्ष बड़े-बड़े टूट जाते हैं| उसने जादू-टौना, तंत्र-मंत्र, ज्योतिषी, स्याना व मठाधीश सब आजमाए| सबका ध्यान बलजीत की समस्या पर कम, उसके वेतन व ऊंचे पद पर अधिक था| इसी गोरखधंधे से हताश-निराश जब शाम को घर लौटता तो उसकी पत्नी कातर आवाज में पूछती, “क्या रहा?” लेकिन वह क्या बताए? सुमित्रा का हृदय विदारक क्रंदन उसे रोज-रोज अंदर तक हिला देता| वह रोती-बिलखती एक ही रट लगाए रहती कि कुछ भी करो मेरे बच्चे वापस ला कर दो|
हर संभव प्रयास के बाद दोनों ने बच्चों के वापस लौटने की आशा ही छोड़ दी| उनके जीवन से रास-रंग सब गायब हो गए| जीवन निरस हो गया| जिंदगी नर्क समान लगने लगी| वे बिना उद्देश्य जी रहे थे| करते कराते एक-एक दिन करके, सप्ताह बीते, महीने बीते| अब उन्हें पक्का विश्वास हो गया था कि उनके बच्चे वापस नहीं आएंगे| क्योंकि वे हर संभव प्रयास कर चुके थे|
एक दिन वे बच्चे भीख मांगते-मांगते लघु सचिवालय की ओर निकल गए| लघु सचिवालय में भीख मांगते-मांगते प्रशासनिक अधिकारियों के निवास स्थान की ओर चले गए| एक आवास का मुख्य द्वार खुला देखकर उसमें प्रवेश कर गए| चौकिदार ने उनको ललकारते हुए रोकने का प्रयास किया| अंदर खाना खा रहे एस. डी. एम. सुमेर सिंह बोले कौन है? चौकिदार बोला भिखारियों के बच्चे हैं| फक्कड़ स्वभाव के एस. डी. एम. साहब ने कहा,”बच्चों को अंदर भेज दो|” बच्चे अंदर आ कर बैठ गए| साहब ने बच्चों से पूछा, “खाना खाओगे?” तो बच्चों ने हां में सिर हिलाया| उस दिन एस. डी. एम. साहब के घर खीर बनी थी| खीर एस. डी. एम. साहब का मनपसंद भोजन है| साहब ने नौकर से कहा,”बच्चों के लिए खीर डाल कर लाओ| नौकर खीर की दो कटोरी भरके लेकर आया| बच्चों को एक-एक कटोरी थमा दी|
कुछ देर बाद एस. डी. एम. साहब ने देखा कि खीर की कटोरी बच्चों के सामने रखी है| बच्चे बैठे हैं| जो खीर खा नहीं रहे|
साहब ने सवाल किया, “खीर खा क्यों नहीं रहे?”
बच्चों ने कहा,”चमच मंगवाओ|”
साहब ने नौकर से चमच लाने को कहा| नौकर ने चमच लाकर दी| चमच मिलते ही बच्चे खीर खाने लगे| एस. डी. एम. साहब सोचने लगे| ये बच्चे भिखारियों के होते तो चमच का इंतज़ार नहीं करते| खीर मिलते ही टूट पड़ते| साहब उठे और नौकर से कहा,”खाना खाने के बाद, इन बच्चों को जाने मत देना| मैं अभी आया|”
थोड़ी देर बाद साहब वापिस आए| उनके हाथों में कुछ पुराने अखबार थे| इन अखबारों में राजू व रीनू की गुमशुदगी की खबर फोटो समेत छपी थी| साहब आश्चर्य चकित हो गए कि ये तो वही बच्चे हैं| जिनकी गुमशुदगी की खबर अखबारों का मुख्य समाचार बनता था| साहब ने तुरंत पुलिस-प्रशासन को तलब किया| दोनों बच्चे उनके सुपर्द कर दिए| साथ में बच्चों के पिता से वहाँ के प्रशासन के माध्यम से संपर्क किया| संपर्क होते ही बलजीत व सुमित्रा आनन-फानन में बच्चों से मिलने आ पहुंचे| बच्चों को देखते ही सुमित्रा व बलजीत दहाड़ें मारकर रोने लगे| जैसे कोई बांध चिरकाल से टूटने को अधीर हो| बलजीत व सुमित्रा ने अपने बच्चों को सीने से लगाने का प्रयास किया| लेकिन बच्चे सीने से लगने के बजाए, पीछे-पीछे हट रहे थे| पुलिस कर्मियों द्वारा पूछने पर बच्चों ने बलजीत व सुमित्रा को माता-पिता मानने से ही इंकार कर दिया| यह घड़ी सुमित्रा व उसके पति के लिए और भी अधिक हृदय विदारक हो गई| दोनों पति पत्नी ने उन्हें पुरानी बातें याद दिलाई| लेकिन उन्होंने पहचानने से साफ मना कर दिया| पुलिस कर्मी पूछताछ के लिए अलग ले गए| उन्हें डराया-धमकाया| दो-दो थप्पड़ भी लगाए| तब बच्चों के माना कि ये ही हमारे माता-पिता हैं| साथ में बच्चों ने ये भी कहा कि वो मंदिर वाले हमें मारेंगे| उनसे बार-बार पूछा गया “वो कौन हैं?” लेकिन बच्चों ने आज तक कुछ नहीं बताया|
दस वर्ष बाद आज भी “वो कौन हैं?” प्रश्न सुनकर दोनों बच्चे सिहर उठते हैं| सहम जाते हैं| परन्तु बताते नहीं कि “वो कौन हैं?”
-विनोद सिल्ला©