वो एक है जहाँ में बड़ा बेमिसाल है
वो एक है जहाँ में बड़ा बेमिसाल है
है नूर सब उसी का, उसी का जलाल है
कोना नहीं बचा है कोई इस जहान में
दुनिया में हर तरफ़ ही उसी का जमाल है
हासिल था क़द्र की ही नहीं उसने भी ज़रा
क्या उससे खो गया है उसे अब मलाल है
होता है घमासान मेरे ज़ह्’न में सदा
ख़ामोश मैं हूँ आज कि उसका ख़याल है
बचने की कोशिशें भी कीं पर बच नहीं सका
साज़िश है दोस्तों की उन्हीं की ये चाल है
रक्खा है आबोदाना भी जंगल के बीच में
चिड़ियों के वास्ते ही बिछाया वो जाल है
मंज़िल भले है दूर ये राहें हैं पुरखतर
जब नाख़ुदा है साथ नहीं फिर सवाल है
भगदड़ सी मच गई है अभी शह्’र में ये क्यों
कोई बड़ी है बात हुआ क्या बवाल है
बेशक़ करें न वस्फ ज़माने के लोग भी
‘आनन्द’ जानते हैं सभी बा-कमाल है
शब्दार्थ:- जलाल =प्रकाश/प्रताप/तेज/महिमा, जमाल = ख़ूबसूरती, वस्फ = तारीफ़
– डॉ आनन्द किशोर