वो एक नदी
हिमखंडों से पिघलकर,
पर्वतों से उतरकर,
खेत-खलिहानों को सींचती,
कई शहरों से गुजरकर,
अविरल बहती आगे बढ़ती,
बस अपना गंतव्य तलाशती,
मिल जाने, मिट जाने,
खो देने खुद को आतुर,
वो एक नदी है ।।
बढ़ रही आबादी,
विकसित होती विकास की आंधी,
तोड़ पहाड़ ,पर्वतों को,
ढूंढ रहे नयी वादी,
गर्म होती निरंतर धरा,
पिघलते, सिकुड़ते हिमखंड,
कह रहे मायूस हो ,
शायद वो एक नदी है ।
लुप्त होते पेड़-पौंधे
विलुप्त होती प्रजातियां,
खत्म होते संसाधन,
सूख रही वाटिकाएं,
छोटे करते अपने आंगन,
गोरैया ,पंछी सब गम गए,
पेड़ों के पत्ते भी सूख गए,
सुखी नदी का किनारा देख,
बच्चे पूछते नानी से,
क्या वो एक नदी थी?
आरती लोहनी