वो अब नहीं आयेगा…
वो अब नहीं आयेगा…
वो अब नहीं आयेगा ,
बिल्लू, मोटी पूंछ वाला।
मार डाला है कुत्तों ने मिलकर,
वो कभी नहीं आयेगा ।
पीला भूरा बदन नीली आंखों वाला,
घर में ही रहता था,
हरकतें अजीब करता था।
कभी सोफे तो कभी स्कूटर की सीटों को,
अपने पैरों से खुरचता था।
अब तो यादों में ही समाएगा…
वो अब नहीं आयेगा…
बार बार आता था चोट खाकर,
डाक्टर भी बुलाया था ,
इंजेक्शन भी लगवाया था।
वो कहता बाहर लोकतंत्र नहीं है,
झपटू कुत्तें बैठे हैं झुंड बनाकर,
वो हमें मार डालेगा।
वो अब नहीं आयेगा…
कागज के गोल पुलिंदो को,
फुटबाल की तरह उछालता,
झपटता फिर अगले ही पल।
करता मानवों सा वो व्यवहार ,
अपने मन को समझाता बारम्बार।
जो भी होगा, वो देखा जायेगा…
वो अब नहीं आयेगा….
एक बार देखा था मैंने,
बाहर गिलहरियों से चल रहा था मुकाबला,
वृक्ष पर चढ़ता और उतरता,वो बिल्लू भोलाबाला।
अपने आत्मविश्वास को टटोलता जब,
गिलहरी ने डांट पिलाई और कहा उससे।
तू वृक्ष पर कभी नहीं चढ पायेगा…
वो अब नहीं आयेगा….
दया धर्म का नामोनिशान नहीं,
कितनी अजीब है ये दूनियां।
घात लगाकर बाहर बैठे जो शत्रु,
कैसे निकलेगी हम सबकी भी मुनियां।
अपने भीतर का जंगलीपन,क्यूँ छोड़ दिया हमनें,
इंसानियत ही तो अपना,दुश्मन बन जाएगा।
वो अब नहीं आयेगा..
दुआ करे हमसब दो पल मौन रहकर,
उन सभी निर्दोष बिल्लू के लिए,
जिसे मार डाला है,झपटू कुत्तों ने मिलकर।
यदि संवेदनाओं से है जीवन का नाता,
तो अंतस की वेदना भी समझें।
मौत पास आकर भी छू ना पायेगा।
वो अब नहीं आयेगा…
बिल्लू, मोटी पूंछ वाला
मार डाला है कुत्तों ने मिलकर।
वो कभी नहीं आयेगा…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०१/०९/२०२४ ,
भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी ,रविवार
विक्रम संवत २०८१
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