वोटों का मौसम आया है
बहर:: 2222 / 2222 / 222
चौराहों पर हमने दंगे देखे हैं।
इस कुर्सी के भूखे नंगे देखे हैं।
लगता है वोटों का मौसम आया है,
हर दरवाज़े पे भिखमंगे देखे हैं।
नेताओं के आगे पीछे चिल्लाते,
मोहल्ले के सारे लफ़ंगे देखे हैं।
फ्री के नारों से गूॅंजा शहर हमारा,
ये कैसे वादे अतरंगे देखे हैं।
छुटभैय्ये भी चिल्लाते हैं टीवी पर,
कुछ अहमक़ टेड़े बेढ़ंगे देखे हैं।
जिन जिनके हाथों में ख़ंजर होते थे,
वो इन दिनों पकड़े तिरंगे देखे हैं।
संजीव सिंह ✍️
नई दिल्ली