वैशाख नंदन
लक्ष्मण का आम आदमी कुछ बने न बने,
पर मूर्ख ज़रूर बनता है।
सालों से सरकारें विकास के नाम पर,
टैक्स ले मूर्ख बनाती आ रही हैं।
लेकिन हद तो तब हुई जब लुगाई ने,
नोटबंदी में हमें पूरा गधा बनाया,
वह राजा भोज और हम गंगू तेली निकले।
तभी हमने सोचा, बस बहुत हुआ,
अब छोटा-मोटा मूर्ख नहीं बनना है,
बनना है तो महामूर्ख बनना है।
सो हम चले सोसायटी में रजिस्टर करवाने,
कि इस बार होली पर महामूर्ख हमें बनाया जाय,
गधे पर बिठा कर हमारा जुलूस निकाला जाय।
जब गधा एक देश की पूरी अर्थव्यवस्था का बोझ,
अपनी पीठ पर उठाए है,
तो क्या हमारा वज़न न सम्हाल पायेगा।
एक मूर्ख दूसरे मूर्ख का सहारा नहीं बनेगा तो कौन बनेगा,
आखिर आड़े वक्त पर अपने ही तो काम आते हैं।
अभी हमने पहला कदम बढ़ाया ही था कि बेटा बोला,
उल्लुओं का समूह पार्लियामेंट कहलाता है।
हम ठिठके, हमारे ज्ञान चक्षु खुले,
अब समझा, पार्लियामेंट में गधे नहीं उल्लू बसते हैं।
और उल्लू तो लक्ष्मी जी की सवारी है,
और दंतकथाओं में जंगल का सबसे होशियार प्राणी,
पूरा गणित अब समझ में आया।
महामूर्ख हम अकेले नहीं पूरी जनता है,
जो होशियार उल्लू के इशारे पर गधा मजदूरी कर रही है,
इस बंदरबांट में गेहूं में घुन की तरह पिस रही है,
और अच्छे दिन की धूनी रमा रही है।