वैराग्य ज्ञान…
वैराग्य ज्ञान
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पोथी पढ़ पंडित हुआ,
अहं घिरा चहुंओर ।
वैराग्य ज्ञान उपजा नहीं,
तो जीवन पटल घनघोर।
मोहरूपी मदिरापान कर ,
मतवाला मनुज मतंग है ।
कालचक्र पहिया घूम रहा ,
इच्छा तृष्णा पतंग है ।
जन्म, कष्ट मृत्यु देखकर ,
भयग्रस्त होता,मनुष्य जब।
वैराग्य उपजा ज्ञान ही ,
भयमुक्त उसे, करता है तब।
अपेक्षाओं का अन्त ही तो,
वैराग्य ज्ञान कुंजी है जग में।
कल्पवृक्ष इच्छा तजकर बंदे,
ध्यानरूप भूषण धर तन में।
हे, मनुष्य तु कौन है ,
अपने स्वरूप का ध्यान कर।
किस निमित्त आया यहाँ ,
प्रभु इच्छा का सम्मान कर ।
स्वाती नक्षत्र मेघ सम दुर्लभ,
श्यामलस्वरूप छवि प्रभु मूरत।
शांत समुन्दर सा चित्त है जिनका,
बैरागी मन को ही दिखता सूरत।
निर्भयता का वरदान तुम्हें ,
लेना यदि इस जन्म में हो ।
मन बैरागी प्रभु जतन लगा ,
ब्रह्मानंद में फिर तुम लीन हो।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०२ /०१ / २०२२
कृष्ण पक्ष, अमावस्या, रविवार
विक्रम संवत २०७८
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