वैमनस्य का अहसास
वैमनस्य का अहसास दूरियां बढ़ा देता है,
इन्सान से इन्सान के मध्य,
विचार और विमर्श के मध्य,
तर्क और तनाव के मध्य,
संन्यासी और कुटिल सोच वाले के मध्य।
………..
वैमनस्य के बीच इन्सान फासला और फैसला,
दोनों भूल जाता है,
उसे सिर्फ और सिर्फ हिंसा याद रहती है,
सांप्रदायिक दंगे होना शुरू हो जाते हैं।
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मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजाघर,
हिंसा की भेंट चढ़ जाते हैं,
जात-पात और धर्म के झगड़े बढ़ जाते हैं,
सज्जन भी दुर्जन बन जाता है।
…….….
आगजनी, पथराव, हिंसक प्रदर्शन,
वैमनस्य के शुरू होने की निशानियां हैं,
वैमनस्य की ज्वाला देश को झुलसा देती,
बचती है तो बस मुट्ठी भर राख।
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हे मानव ! वैमनस्य को त्यागकर,
अपने भाईचारे की आहुति मत दे,
अपने आपको जनसमुदाय के प्रति समर्पित कर,
और देश के विकास में सहयोगी बन।
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डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।