वैधव्य
वैधव्य का अर्थ ,
सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं,
वैधव्य बताता है कैसे धकेला जाता है,
जीवन को मृत्यु की ओर,
कैसे बदला जाता है ,
चमचमाती कांच की चूड़ियों को,
प्लास्टिक या सीप के बने छल्लों में,
इंद्रधनुषी रंगों से सजे वस्त्र,
शांत सफेद रंग में बदल जाते अचानक,
कल तक शुभ शकुन करते हाथ,
कांपने लगते अनिष्ट की आशंका से,
ऐसा क्या बदल गया,
वही तो हुआ जो शास्वत सत्य है,
जितना चाँद ,तारों और सूरज का प्रकाश,
उतना ही जीवन और मरण दौनों,
फिर एक मृत्यु दूसरे जीवन पर भार क्यों?
जीवित जीवन एक अभिशाप क्यों?
प्रकृति और पुरुष पूरक हैं एक दुसरे के,
फिर वैधव्य का भार सिर्फ अर्धांग पर क्यों,
वैधव्य का भार सिर्फ स्त्री पर क्यों।
वर्षा श्रीवास्तव “अनीद्या”