शूद्र व्यवस्था, वैदिक धर्म की
कभी राम ने शम्बूक मारा,
कभी द्रोण ने एकलब्य का अंगूठा धरा,
जीवन भर धनुर्धारी कर्ण तड़फता रहा,
उसे ना कभी न्याय सम्मान मिला..।
ऐसी है भारत वर्ष की कहानी,
ऐसा ही सनातन धर्म का इतिहास रहा,
शूद्र ने सुन लिए पुराण शास्त्र तो,
उसके कानों में खोलता हुआ गर्म तेल भरा..।
महिलाओं को चरणों में बिठाया,
ना कुछ गलती पर चट्टान बनाया,
एक को भोगा पाँच भाइयों ने,
तो सीता को भी बार-बार अग्नि में जलाया..।
यह कैसा इतिहास हमारा,
यह कैसा शास्त्रों का न्याय रहा,
पति हुआ स्वर्गवासी असमय,
तो महिलाओं को सती बनाकर जिंदा जलाया..।
इंद्र ने अपवित्र किया अहिल्या को,
पाराशर ने मत्स्यगंधा से सहवास किया,
कुंती के गर्भ में सूरज का बेटा,
तो विश्वामित्र ने मेनका के लिए तप व्रत तोड़ दिया..।
बाहरी आक्रांता लुटेरे सब देख रहे थे,
वैदिक धर्म के भेदभाव को समझ रहे थे,
जहाँ शास्त्र इंसान को इंसानों से दूर कर रहे,
आततायियों ने इस अवसर का लाभ उठाया..।
स्वार्थ सिद्धि करने केवट को भी गुरु बनाया,
शबरी का झूठा बेर भी खाया,
कुंती रोयी हाथ जोड़कर कर्ण के आगे,
बरना दुराचारी ब्राह्मण रावण की चरण धूल को माथे से लगाया..।
शूद्र कहकर इंसानों को जानवर बतलाया,
यह कैसा मनू का न्याय शास्त्र रहा,
सूरज,बादल,धरती,नदी ना करते भेद किसी में,
वेदों की वर्ण व्यवस्था ने यह कैसा अप्रासंगिक भेद बनाया..।
शूद्र बोले पाली, प्राकृत भाषा,
ब्राह्मण क्षत्रिय संस्कृत पर अधिकार रखे,
हर वक्ष नितंब को काट डाला,
जो शूद्र महिला इनको ढक कर चले.।
यह कैसी आर्यों की व्यवस्था,
वेद उपनिषदों का यह कैसा आध्यात्म रहा,
ब्राह्मण क्षत्रिय यज्ञ, योग, ध्यान ही करते,
शूद्रों को राम कहने का भी ना अधिकार मिला..।
यह कैसा था भेदभाव ब्रह्म का,
पानी, परछाई तक से भी दूर रखा,
ब्राह्मण क्षत्रियों को सिर, कंधे पर बिठाया,
तो शूद्रों का स्थान आदिम पुरुष के तलबों में रहा.।
क्या यही रही सनातनी व्यवस्था,
क्या इसी पर हम सब गर्व करें,
जहाँ इंसानों को गाय पशु से भी बदतर समझा,
आज वोट के लिए ब्राह्मण, शूद्रों के यहाँ भोज करें..।
वाह रे वाह व्यवस्था बनाने वालो,
तुम्हारी कलम की चतुराई को क्यों ना धन्य कहें,
आरक्षण से शूद्र को चौथे दर्जे का प्रमाण पत्र दे दिया,
मंदिर, संसद उद्घाटन पर शूद्र राष्ट्रपति को दूर रखें..।
प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली-07