वैक्सीन
वैक्सीन लगाई गई एक सौ पचास करोड़,
निकल गई देखों आम आदमी की
मरोड़.
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जान जरूरी है जहान् का देखों क्या,
धन से सब कुछ, धान्य से होता क्या.
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जनता देखती रह गई, बैठ गया व्यवहार,
घर में बंधक बने रहे,निकला न कछु सार
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मुंह देख निकले तिलक जन जन परेशान
घर में कनक नहीं खुद ही खुद की जान.
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घर घर राम पहुंचे, बदल बदल वेश.
पहले दें अग्नि परीक्षा फिर हो प्रवेश
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व्यवाहरिक बोध जगा,मंदिर मन माय,
जो खोई सुधबुध ,पायो सबकुछ जाय.
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तेरा दुश्मन तू खुद है समय रहते पहचान
तेरी खामी तुझ में,काहे बना फिरे अंजान
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हर हाल में चुनाव जीतना जिनका हो काम,
लगा देते है अपना भेद दाम दण्ड और साम .