वेश्या ( व्यक्ति, उसमें खासकर पुरुष ये शब्द बोलते ,उसी नजर से नजरिया तक
कोई तो मिला होता
जिसमें सब्र दिखा होता
कहते हैं औरत नर्क का द्वार हैं ।
पर ये बात हैं ,जो सभी पर लागू हो सकते।
वेश्या को रोज जान + वर और असली नर्क देखा करती । तुम आते – जाते द्वार देखते हो।
पता है अपना क्या दिखा आते हो
कोई तो मिला होता
जिसमें सब्र दिखा होता
जुनूने इश्क का अजमाइश करते हैं।
चंद लम्हों में ही तन की फरमाइश कर देते हैं।
अपने जिस्म,मन का नुमाइश कर देते हैं।
वेश्या ,तो कौमें इश्क वफ़ा करते हैं ।
जरूर, धन जिस्म से कमाती हैं ।
पर वो अपना रोटी खाती ,
कौन सा वो वोटी (तन) खाती है।
तेरी जिस्म भूख भी मिटाती है ।
कौन सा महान् काम करते हो।
थोड़ी धन उसके नाम करते हो।
जरूरत पास हैं तेरे – उसके
गम भी साथ हैं तेरे – उसके,
वेश्या नाम देते हो,
ग्राहक तुम्हीं तो बनते,
सरेआम बदनाम कर देते हो
अपना ( पुरूष ) इज्जत तुम भी गवाँ देते हो
पर किसी को भी वफ़ा ,इश्क नहीं बेचती वो
वो बाजारू होकर भी ,
इज्जत लुटाकर भी सम्हालती हैं तुझे।
जरूरत पास हैं तेरे- उसके , गम भी साथ हैं तेरे- उसके
वेश्या तुम्ही नाम देते हो
ग्राहक तुम ही तो बनते हो
कौन सा महान् काम करते हो।
कोई तो मिला होता
जिसमें सब्र दिखा होता
जुनूने इश्क का अजमाइश करते हो
चंद लम्हों में ही तन की फरमाइश करते हो
अपने मन का तुम भी नुमाईश करते हो ।
_ डॉ. सीमा कुमारी,
बिहार,भागलपुर,दिनांक-6-4-022की
मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं