वेदना में वंदना ज़रूरी पर करते नहीं है,
वेदना में वंदना ज़रूरी पर करते नहीं है,
संवेदना के स्वर मधुर पर मिलते नहीं हैं।
अटखेलियां करने को मजबूर वक्त आदतन,
पांव मेरे हैं पर साथ वक्त के चलते नहीं हैं।
सिमट जाऊं खुद में खुद को छिपा लूं,
वो गुनाह करते बहुत हाथ पर मलते नहीं हैं।
किसकी बात करते हो वो बहुत पेचीदा है,
ऐसे ही तो सांप आस्तीनों में पलते नहीं हैं।
– मोहित