वृद्ध माँ बाप
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वृद्ध माँ बाप को कष्ट देकर सदा , मंदिरों में तु सिर को झुकाता रहा।
इस तरह पुण्य से भी है क्या फायदा, जब पिता का हृदय तू दुखाता रहा।
भूख से मातु व्याकुल पिता है दुखित, आपने उनको भोजन खिलाया नही।
खाट टूटी हुई और बिस्तर नही, चैन से एक पल भी सुलाया नही।
हाथ से जल पिता को पिलाया नही, मन्दिरों में सदा जल चढ़ाता रहा।
इस तरह पुण्य से भी है क्या फायदा, जब पिता का हृदय तू दुखाता रहा।
कष्ट सहकर तुझे जन्म माँ ने दिया, ख्वाब थे की बनेगा सहारा कभी।
भूलकर प्यार, हैवान तुम बन गए, डांट फटकार कर गालियाँ दें सभी।
आज ढाकर सितम वृद्ध माँ बाप पर , तीरथों के तू चक्कर लगाता रहा।
इस तरह पुण्य से भी है क्या फायदा, जब पिता का हृदय तू दुखाता रहा।
वृद्ध आश्रम पिता को कहीं छोड़कर, कर रहा आज पूजा तू भगवान की।
आप बन तो गए हैं बड़े आदमी, मिट गयी शिष्ट है आज सम्मान की।
अपने कर्मों को तूने सुधारा नही, और गंगा में डुबकी लगाता रहा।
इस तरह पुण्य से भी है क्या फायदा, जब पिता का हृदय तू दुखाता रहा।
अभिनव मिश्र अदम्य