वृद्धावस्था
जब रूप और यौवन ढल जाएगा,
जब हाथ रहेंगे कंपन में,
तब भी तुम क्या साथ रहोगे ?
बेडौल देखूं जब दर्पण में !
जब आँख की ज्योति धूमिल होगी,
चांदी केश का अनुपम श्रृंगार,
तब भी क्या यूं ही निहारोगे ?
चेहरे पर झुर्रियों की भरमार !
दंत भोजन चबा सके ना ,
आंत आहार पचा सके ना,
बोल भी टूटे-फूटे से हों
और बिमारी का बरबस वार,
वृद्धावस्था की उस बेला में ,
रहोगे मेरे क्या कुंवर ?
जब रूप औ यौवन ढल जाएगा,
साथ करोगे तय सफर ?