वृक्ष
वृक्ष का धर्म क्या है जहां कहीं खड़ा हो वहीं से शीतलता व उन्नत पुष्प तथा फल प्रदान करे वो कभी दूसरे की निंदा नहीं करते और ना ही ईष्या चूंकि उनकी प्रवृति ऐसी नहीं होती वो जितने दीर्घ होते जाते हैं उतने ही घने और श्रद्धेय होते जाते हैं पर मानव के अंदर ऐसे गुणों का अभाव होता है आधी उम्र से अधिक बीत जाने पर भी दूसरों पर निर्भर रहते हैं जबकि ऐसे कर्म करने चाहिए या ऐसा आचरण हो कि दूसरे लोग भक्त बन जाए व्यवहार तथा अच्छे कर्म, गुण ही पहचान होते है।मानव जन्म लेता है बड़ा होता है और साधारण जीवन जीता दूसरे लोक चला जाता है क्या यही जीवन है शायद नहीं।ऐसे कर्म आचरण हो कि सौ पचास जन तो आपके व्यवहार गुणों को सराहे।उम्र के इस पढ़ाव पर आकर लगता है कि इस तरह का जीवन मात्र जीना ही है और कुछ नहीं।कोई आपको श्रद्धेय समझने लगे तो समझे आपके अंदर कुछ ख़ास बात है जो आपको दूसरों से इतर कर रहा है उसी तरह जैसे वृक्षों की ख़ास पहचान होती है नाम से ही दृश्य ज़हन में प्रकट होने लगता है •••
मनोज शर्मा