वृक्ष और मानुष
मानुष जीवन तरुवर रूप समान है
फल छाया जीवन ढंग एक समान है
वसुंधरा में ही अंकुरित होता है
बीज वसुधा में उगाया पेड़ का
लवण खनिज जल पवन प्रकाश
सब मिले प्रकृति व रत्नप्रभा से जैसे
वैसे ही मिलता है मनुज को जन्मपूर्व
जजनी मेदिनी रुपी माँ के आँचल से
महानील समान पालक जनक तात से
खान पान वास सब मिलता परिवेश से
अंकुरित बीज से जब बनता है बीजू
सहता है धूप दोपहरी,बहता ठहरा पानी
अवांछित साथी की मार,शत्रु भरमार
समीर का झोंका,प्रकृति का कहर जैसे
वैसे ही सहे मनु सुत मानव इस जहाँ में
भूख का झटका,बीमारियों का मस्का
मौसम की मार,घर की चित चित्कार
फिर भी अग्रिम बढता सब कर दरकिनार
बीजू जब बन जाता हैं तरूवर विशाल
देता है बल, करता है छाया,अनिल बिहात
सहकर निशदिन प्रकृति प्रकोप वार प्रहार
खड़ा रहता है वसुमती में स्तम्भ समान
पर लपेटकर सोनजुही सी बेलों को
देता है सहारा पथिक विहंगम को जैसे
वैसे ही मनुष्य देता है सहारा पूर्ण कुटुम्ब को
सबकी जरूरतों को पुरा करता रहता है
सहकर कपटी,धुर्त,इर्ष्यालुओ,स्वार्थियों के
वारो ,प्रहारों,धोखों,प्रकृति के प्रकोपों को
जलाकर तनबदन पालन पोषण करता है
विशाल वृक्ष जब ठूँठा सा है बन जाता
हो जाता है जर्जर बन जाता है खोखला
निर्जन में अपेक्षित शक्तिविहीन थोथा जैसे
वैसे ही युवा नर हो जाता हैं वृद्ध अपाहिज
हो जाता है उपेक्षा का शिकार बध अपेक्षित
देखता निहारता रहता है उनको जिनको
दिया था सहारा पाला पोशा था निज कर से
पर अब भी सहारा नई पीढियों का और
बन गया है निज घर का मुफ्त पहरेदार
मानुष जीवन तरूवर रूप समान है
फल छाया जीवन ढंग एक समान है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत