वृक्षों के उपकार….
वृक्षों के उपकार…
पाला हो या गर्म हवा हो,
या अँधियारी रात।
हर मुश्किल में अडिग खड़े ये,
सहते हर आघात।
विकट परिस्थिति आएँ कितनी,
मानें कभी न हार।
गुनो जरा तो मन में अपने,
वृक्षों के उपकार।
परहित में रत देव सरीखे,
लिए खड़े उपहार।
गरल कार्बन का पीकर ये,
करें जगत-उद्धार।
सुरक्षा-कवच वृक्ष हमारे,
ऑक्सीजन के स्रोत।
इनके होने से हम सबकी,
जलती जीवन-जोत।
रक्षक बन ये वैद्य सरीखे,
करते हर उपचार।
चला कुदाली क्यों इन पर तुम,
लेते इनकी जान ?
मूढ़ ! यही तो देते जग को,
प्राण वायु का दान।
स्वार्थ लिप्त हो काट इन्हें क्यों,
करते खुद पर वार।
जीव-जंतु आश्रित सब इनपर,
इनसे सकल जहान।
हमें-तुम्हें सबको ही मिलकर,
रखना इनका ध्यान।
स्वस्थ रहें हम दम पर इनके,
मिले पुष्ट आहार।
करें कृतज्ञता ज्ञापित अपनी,
ले रक्षा का भार।
बचे रहें हम, बचे रहें वन,
बचा रहे संसार।
© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद
“मनके मेरे मन के” से