वीर की शोभा
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
वीर की शोभा नहीं
वीर की बातें
धरती जलती
अग्नि जलती
जलता पूरा गगन
धरती जलती
अग्नि जलती
जलता पूरा गगन
……ओ वीर रस के वीर कवि तेरी आंखों में नहीं पानी
तेरी आंखों में नहीं पानी
किस काम का तु वीर कवि
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
मर रही जब मानवता
मर रही जब मानवता
बातें करें बड़ी-बड़ी कुछ तो उद्गार कर दो मुख से कुछ तो है बोलो
कुछ तो उद्गार कर दो मुख से कुछ तो है बोलो
समय बहुत ही विकट बना है
समय बहुत ही विकट बना है
तेरी आंखों में नहीं पानी
तेरी आंखों में नहीं पानी
किस बात का तु वीर कवि
मुझे न कुछ कहना है मुझे न कुछ सुनना
देख लो आंखों के सामने साक्षी तू बना
मुझे न कुछ कहना है मुझे न कुछ सुनना
देख लो आंखों के सामने साक्षी तू बना
कैसा समय जब पहले था जब गायन होता था
किलो किलो से मंजर तेरा ही कायल होता था
तेरा मंजर जब थक गया तू विकलांग बन गया था
तेरा मंजर जब थक गया तू विकलांग बन गया था
जब देशनायक व्यापारी बन जाए तो जनता फकीर कंगाल हो जाए
और मेरे कवि की जुबान सिल जाए आगे कहने को कुछ ना बच जाए
मुझे अब ऐसे लग रहा ओ.. राम नाम लेने वालों
जो मेल भरा है मन के अंदर उसे बाहर तो निकालो
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
वीर की शोभा नहीं वीर की बातें
सद्कवि की क़लम से……
प्रति उत्तर का इंतजार रहेगा