$वीर/आल्हा छंद- प्यारा भारत
#वीर/आल्हा छंद
वीर एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 31-31 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति सौलह, पन्द्रह (16,15) पर होती है। चरणान्त में गुरू-लघु ( 2-1) मात्राएँ आती हैं। इस छंद के क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांतता होती है। इसका दूसरा नाम ‘आल्हा छंद’ भी है।
#प्यारा भारत
भारत भूमि है वीरों की, संस्कारों का अद्भुत ठाँव।
शहर अनोखे यहाँ देखिए, देख लीजिए सुंदर गाँव।।
देश-प्रेम की ख़ूब मिसालें, वेद पुराणों का है शोर।
शाम रंगीली सुबह सुहानी, हर मौसम मानो चितचोर।।
अरुणाचल के काँत सिरों पर, प्रथम किरण का होता वास।
अपनेपन का राज़ यहीं है, रिश्तों का मनहर उल्लास।।
राम यहीं पर श्याम यहीं पर, देव सभी का आँगन द्वार।
पुण्य धरा का रूप यहीं पर, शोभित मनभावन शृंगार।।
तुलसी कबीर की वाणी सुन, राधा मीरा का यह प्यार।
गुरु नानक रविदास संत की, वाणी अनुपम उपहार।।
दादु दयाल यहीं गाते थे, पावन मनभावन मन गीत।
गीता रामायण पढ़ो यहीं, पढ़ो महाभारत की रीत।।
हिंदू सिक्ख इसाई मुस्लिम, धर्मों का संगम है नूर।
भाईचारे का अमृत चखो, घृणा रहेगी मन से दूर।।
भारत भूमि शील लिए है, धैर्य धरे होकर गंभीर।
साहित्य सरस अमर मनोहर, हरे मनों की प्रतिपल पीर।।
राग रागिनी मीत बनाएँ, कथा सिखाएँ सुंदर रीत।
इतिहास बताए किस्सा वह, सबका लेता दिल जो जीत।।
द्रोणाचार्य सरिस गुरु मिलते, एकलव्य सम प्यारे भक्त।
गुरु-दक्षिणा माँगें देते, काट अँगूठा भूलें रक्त।।
आंबेडकर सरिस महापुरुष, अब्दुल जैसे देख महान।
महा ज्योतिबा फूले मानव, नारी सावित्री हैं शान।।
वाल्मीकि आदि कवि हुए यहाँ, महकाएँ हैं आज अतीत।
देव बिहारी घनानंद सुनो, हर्षाएँ प्रेम भरी प्रीत।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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