वीरो को हम – शीश नवाये
रेगिस्तान और पहाड़ो में,
बारिश और तूफानों में,
जंगल और विरानो में,
रहते बर्फीले मैदानों में,
रोके न रुके दुश्मन के,
सरताज है अंजुमन के
जब उठा हथियार चल पड़े
दुश्मन के भाल शिकन पड़े
डरे नहीं ये हटे नहीं कभी,
बढे जिस पथ फिर डटे वही
जिसे रोक सके न घाटियां
बम, गोली ना लाठिया,
कभी धूप में कभी छांव में,
कभी शहर में कभी गाँव में
ह्रदय में नई उमंग लिए,
जीने की सदैव तरंग लिए,
कदम कदम बढ़ाते जाते,
तिरंगे को फहराते जाते,
जीते है वतन की शान में
मर मिटते माँ की आन में,
उन वीरो को हम करे नमन
जिनसे खिले अपना चमन,
हम सब उनकी गाथा गाए
आओ मिलकर शीश नवाये !!
!
डी के निवातिया