वीरांगना लक्ष्मीबाई
जन -जन को जागृत करने का ,
वह विगुल बजाने आई थी,
निज साहस ,शौर्य,वीरता की,
पहचान बनाने आई थी ,
बुंदेलखंड की धरती का,
वह मान बचाने आई थी,
अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध,
रणचंडी बनकर धाई थी।
सन् सत्तावन की वीरांगना,
लक्ष्मीबाई मर्दानी थी,
नाना की मुंहबोली बहना,
सारी झांसी की रानी थी।
ढाल, कटारी, बरछी के संग,
बचपन में ही खेली थी,
झांसी का सौभाग्य जगा था,
उसकी तलवार सहेली थी।
उर में अंकुर आजादी का ,
बचपन से लेकर आई थी,
यौवन में वह प्रस्फुटित हुआ,
दुर्गा बन अस्त्र उठाई थी।
तलवार चलाना, दुर्ग तोड़ना,
खेलों में उन्हें महारत थी,
गोरों ने भारत में आकर,
जब ऊधम खूब मचाया था।
कालरात्रि बन मनु ने तब,
उनको सबक सिखाया था,
लड़ते लड़ते अंत समय वह,
वीर गति को पाई थी।
बुंदेल वासियों के मुंह पर,
रानी की अमर कहानी थी,
जन जन को जागृत करने का,
वह विगुल बजाने आई थी।
अनामिका तिवारी” अन्नपूर्णा “✍️✍️