वीरवर (कारगिल विजय के सुअवसर पर)
धन्य हमारी मातृभूमि, धन्य हमारे वीरवर
लौट आये कालमुख से, शत्रु की छाती चीरकर
बढ़ चले विजयनाद करते, काल को परास्त कर
रीढ़ शत्रु का तोड़ आये, वज्र मुश्ठ प्रहार कर
पीछे न हट सके वो पग, जब काल का प्रण किया
रणबांकुरों ने ऐसे हँसके, मृत्यु का वरण किया
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