वीरबन्धु सरहस-जोधाई
राजा गुरु बालक दास जी के प्रधान सेना नायक एवं अंगरक्षक सरहस और जोधाई दोनों जुड़वा भाई थे। उनका जन्म 7 नवम्बर सन् 1805 ई. में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। वे दोनों महन्त प्रमोद टण्डन साहेब एवं गायत्री माता के सुपुत्र थे। सरहस पहले पैदा हुए थे और जोधाई तत्काल बाद। उन दोनों का कहना था- “हमर लहू के एक-एक कतरा ह सतनाम के रक्छा बर निछावर हे।”
सरहस और जोधाई युद्ध कला एवं शस्त्र चालन में अत्यन्त पारंगत थे। दोनों भाइयों में पीठ जोड़कर लड़ने की अद्भुत क्षमता थी। वे ऐसा लड़ते हुए किसी भी ताकतवर सेना को परास्त करने की अद्वितीय क्षमता रखते थे। उन्होंने शस्त्र चालन का प्रशिक्षण देकर श्रेष्ठ लड़ाकों की टीम तैयार किये थे। ताकि आपात काल में लड़ाकों की टीम की सहायता प्राप्त की जा सके।
सन् 1857 के सैनिक विद्रोह के बाद भारत का शासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी से लेकर ब्रिटिश शासन ने अपने अधीन कर लिया था। अंग्रेजों ने भारत में सुवस्थित रूप से शासन करने के उद्देश्य से शासन प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन करते हुए “मालिक मकबूजा कानून” लागू किए। ब्रिटिश सरकार से गुरु बालक दास को राजा की पदवी और सेना रखने की सनद प्राप्त हो चुकी थी। मालिक मकबूजा कानून में उसे न्यायाधीश की तरह अधिकार प्राप्त हो गया था। इस कानून के तहत सर्वेक्षण कराकर पेशवाओं के द्वारा छीनी हुई भूमि पर सतनामियों एवं अन्य सभी कमजोर वर्गों को फिर से अधिकार प्राप्त होकर राजस्व रिकॉर्ड में उनका नाम अंकित होने लगे थे। इससे उन्हें भविष्य में बेदखल करना मुश्किल था। विवाद की स्थिति में मान्य मुखिया होने की वजह से गुरु बालक दास का निर्णय अन्तिम था। जातिवादी सामन्त यह अच्छी तरह समझते थे कि गुरु बालक दास के रहते हुए हम अपने गलत मंसूबे में कामयाब नहीं हो सकेंगे। इसलिए गुरु बालक दास की हत्या का व्यापक षड्यंत्र रचा गया। इस हेतु बाहर से भाड़े के प्रशिक्षित लोग भी लाए गए थे।
गुरु बालक दास बोड़सरा बाड़ा का जिम्मा एक विश्वसनीय अंगरक्षक को सौंपकर रामत (दौरा) के लिए निकले थे। इसी क्रम में वह औराबांधा-मुंगेली में रावटी (बैठक) करने गए थे। इस दौरान दुश्मनों ने योजनाबद्ध ढंग से उनके रात्रि विश्राम के दौरान 16 मार्च सन् 1860 को उन पर प्राण घातक हमला कर दिए। इस दौरान सरहस और जोधाई बन्धुओं ने असीम शौर्य और सूझबूझ का परिचय देते हुए पीठ जोड़कर लड़ते हुए दुश्मनों की विशाल संख्या को प्राण बचाकर भागने को विवश कर दिए। इस हमले में गुरु बालक दास जी लड़ते हुए गम्भीर रूप से घायल हो गए।
सुरक्षा दस्ता गुरु बालक दास जी को सतनामधर्मियों का मुख्यालय भण्डारपुरी ले जाना चाह रहे थे, लेकिन वक्त की नजाकत को भाँप कर रास्ता बदलकर नवलपुर-ढारा ले जाने लगे, जो गुरु बालक दास का ससुराल-ग्राम था। इस दौरान 17 मार्च 1860 को रास्ते में कोसा ग्राम में उन्होंने अन्तिम साँस ली।
सरहस और जोधाई बन्धुओं की वीर गाथा आज भी जन-जन की जुबान पर है। उनके जन्म दिवस कार्तिक पूर्णिमा को दीप प्रज्जवलित कर इन वीर बलिदानियों को श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। ऐसे शौर्य के पर्याय वीरबन्धुओं- सरहस और जोधाई को हमारा शत-शत नमन्,,,,💐💐
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
दुनिया के श्रेष्ठ लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।
सुदीर्घ साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।