विष अमृत हो जाता है
एक नाम तुम्हारा जपने से मन में उजाला होता है।
वो अमृत बन जाता है जो विष का शोक प्याला होता है।।
रोम-रोम अरे तन का झूमे गाए पुकारे तुमको ही।
घूम-घूम घिरे मनवा फिर-फिर जाए निहारे तुमको ही।
जाग-जाग पहर आठों चाहे वो मन निराला होता है।।
वो अमृत बन जाता है जो विष का शोक प्याला होता है।।
डाल-डाल लदी मन की फूलों कलियों भरी लहराए जब।
भक्ति-शक्ति बनी नश-नश में दौडे़ और जन चौंकाए जब।
कृष्ण-बाँसुरियाँ सुन राधा-मीरा हाल ग्वाला होता है।।
वो अमृत बन जाता है जो विष का शोक प्याला होता है।।
एक नाम तुम्हारा जपने से मन में उजाला होता है।
वो अमृत बन जाता है जो विष का शोक प्याला होता है।।
आर.एस. “प्रीतम”
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