मातृभूमि
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
सुंदर शरीर का, देखो ये क्या हाल है
हम गैरो से एकतरफा रिश्ता निभाते रहे #गजल
मिली जिस काल आजादी, हुआ दिल चाक भारत का।
Shabdo ko adhro par rakh ke dekh
इक चाँद नज़र आया जब रात ने ली करवट
गमछा जरूरी हs, जब गर्द होला
करतल पर सबका लिखा ,सब भविष्य या भूत (कुंडलिया)
ग़ज़ल - ज़िंदगी इक फ़िल्म है -संदीप ठाकुर
ठण्डी राख़ - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हैंडपंपों पे : उमेश शुक्ल के हाइकु
मुझे भी जीने दो (भ्रूण हत्या की कविता)
मेरा जो प्रश्न है उसका जवाब है कि नहीं।
दिल ये तो जानता हैं गुनाहगार कौन हैं,
चिट्ठी तेरे नाम की, पढ लेना करतार।
आखिरी अल्फाजों में कहा था उसने बहुत मिलेंगें तेरे जैसे
हमें कोयले संग हीरे मिले हैं।