विष्णु आते न अवतार में।
महालक्ष्मी छंद (वाचिक)
२१२ २१२ २१२
झूठ होता न आचार में।
कष्ट होता न संसार में।।
अर्थ की यदि न होती ललक
होड़़ होती न व्यवहार में।
प्रीति होती जहां रीति में,
दर्द होता न उद्गार में।
खोखली है मनुष भावना
नेह दिखता न आभार में।
पाप होता जमीं पे नहीं,
विष्णु आते न अवतार में।