विषय-मैं महान हूँ।
विषय-मैं महान हूँ।
शीर्षक-अच्छी इंसान हूँ।
विद्या-कविता।
मैं महान हूँ, जब इस पर विचार करती हूँ।
तब सोच के कई पड़ाव, पार करती हूँ।
बीते हुए कई लम्हों से, बार-बार गुजरती हूँ।
सोचती जब परिवार के बारे में,तब स्वयं को शायद महान ही पाती हूँ।
खुद को एक इस्तेमाल, सामान ही पाती हूँ।
बनाया इनका सम्मान फिर भी,खुद के लिए अपमान ही पाती हूँ।
जो दूसरों के दुःख मिटाता,कष्ट दूर करता है।
उसकी सादगी बन जाती जहर,हर कोई मजबूर करता है।
जग मतलबी और बार-बार साबित,
यही दस्तूर करता है।
महान तो संत ही बन पाते हैं।
दुनिया का हर स्वार्थ,सह जाते हैं।
होकर प्रताड़ित भी,खुश रहो कह जाते हैं।
मैं संत जैसी हूँ पर संत नहीं।
महानता के कुछ गुण मुझमें,पर सारे अवगुणों का अंत नहीं।
महान नहीं,जब महानता रहती जीवन पर्यंत नहीं।
महान बना नहीं जाता,
दुनिया में रहकर।
पहले अच्छे इंसान तो बनकर दिखाओ,जीवन धारा में बहकर।
न पालो वहम,खुद को महान कहकर।
अच्छे गुण मुझमें,नहीं मैं महान हूँ।
पर बेशक एक अच्छी इंसान हूँ।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
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