विश्व रंगमंच दिवस पर….
वृहद् रंगमंच ये दुनिया सारी….
विरंचि-विरचित प्रपंच यह भारी।
रंगमंच-सी भासित दुनिया सारी।
जीव जहाँ अभिनय करता है,
नित नूतन अति विस्मय कारी।
नयनाभिराम निसर्ग-दृश्य-दर्शन।
सृष्टि अनूठी अद्भुत बिंबांकन।
नर्तन सम्मोहक नियति-नटी का,
करता नियंता तटस्थ मूल्यांकन।
अनुस्यूत कथाएँ मुख्य-प्रासंगिक।
हाव-भाव चाक्षुष और आंगिक।
मिल सब भव्य कथानक गढ़ते,
नाट्यशाला सी भू खुली नैसर्गिक।
पात्र आते निज किरदार निभाते।
दर्शक उन संग घुल-मिल जाते।
गिरती यवनिका पटाक्षेप होता,
एक नया दृश्य फिर सामने होता।
त्रिगुणात्मक प्रवृत्तियाँ मानवीय।
रचतीं पल-पल नवल प्रकरण।
व्यक्ति-अभिव्यक्ति भाषा-शैली,
करते मिल सब भाव-अलंकरण।
कथानक श्लाघ्य सदा वह होता।
अंततोगत्वा अंत सुखद जिसका।
नाटिका वही सफल कालजयी,
हो सन्देश महत् फलद जिसका।
इस वृहद् रंगमंच के पात्र हम सब।
भूमिका लघु बेशक पर अहं हमारी।
छोड़ जाएँ कदमों के निशां कुछ ऐसे,
चले युगों तक जिन पर दुनिया सारी।
© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)