विश्व पुस्तक दिवस पर पुस्तको की वेदना
ई बुक्स आते ही,हमारा बहिष्कार हो गया,
जैसे कोई हमारा,बाज़ार से बनवास हो गया।
क्या होगा हमारा भविष्य हमको पता नही,
बच्चो के बसतो से हमारा बहिष्कार हो गया।।
जमाना हो गया,अब भरे कैसे किलकारियां,
मरने की कर ली है हमने भी अब तैयारियां।
आ गई है ई बुक्स हमारे स्थान पर,
समझ रहा न कोई भी हमारी लाचारियां।।
किताबो से पूछ रही है,सब बंद अलमारियां,
बाहर क्यों नहीं जाती,क्या तुम्हे बीमारियां।
रो रो कर किताबे अलमारियों से ये बोली,
बाहर कैसे निकले,मिलती नही हमे सवारियां।।
कविता कहानी रचनाएं सब हम में ही कैद थी,
शिक्षा विभाग से पढ़ने के लिए हम ही वैध थी।
कहां गए वे कानून,कोई इन्हे नही अब पूछता,
ई बुक्स ने ही हमारे लिए गहरी सैंध की थी।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम