विश्व धरा पर संकट
विश्व धरा पर संकट
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हे!विषम ये युद्ध छिड़ा,
सारा खौफ प्रभु हर लीजे।
जन ही जन का लहु करे,
अब सब के उर में प्रभु प्रेम भर दीजे।।
समय ने आज कुचक्र घुमाया।
अधर में फंसी नर की प्रभु काया।।
ना झगड़ो आपस मैं तुम,
रार सभी है भूलो।
मीठी यादों के साथ,
सह जीवन है झूलो।।
कलप जाए जनता,
दंभ,द्वेष उर से हर लो सारी।
कैसी चली ऐ आंधी,मन मांगे शांति,
काल बड़ा प्रभु भारी।।
कठिन समय है,संकट जगत में छाया।
छिड़ी युद्ध की क्रांति,
धार मनुज की पापु काया।।
जगत में कभी अमर कब होता।
छल,कपट,कलुष हिय में नर आपस बोता।।
ऐ जग झूठी माया,भजले राम-राम रे मानव।
मानुष पर कब टूट पड़े,
मानुष बनकर दानव।।
विश्व का प्रभु सकल,कष्ट संकट हर लीजे।
सबके हृदय में प्रभु,
शांति, अमन,चैन और सुख भर दीजे।।
सुषमा सिंह *उर्मि,,