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21 Mar 2022 · 1 min read

विश्व कविता दिवस

विश्व कविता दिवस
++++++++++++++++
निज कष्टों को पीकर के में,
अंतर की प्यास बुझाती हूं
रचनाएं लिखती जाती हूं।

जब-जब अंतर अकुलाता है,
भावों की धार बहाती है
में निज छंदो से सींच-सींच ,
सपनों की फसल उगाती हूं—
रचनाएं लिखती जाती हूं,

अन्याय जहां पर होता है,
जब दुखियों का मन रोता है—
में न्यायार्थ सदा आवाज उठाती हूं।
रचनाएं लिखती जाती हूं–

जब इच्छाएं मर जाती हैं,
घनघोर निराशा छाती है
में जान डालकर सपनों में,
आशा का दीप जलाती हूं!!!!
रचनाएं लिखती जाती हूं——–

माना कि मेरा हृदय कोमल,
पर!मुझमें सच का अतुलित बल,
नफरत की भारी दीवारें
शब्दों से तोड़ गिराती हूं—
हृदय समाहित सकल सृष्टि!
प्रभु ने सौंपी दिव्य-दृ्ष्टि,
में गगन भ्रमण कर,
पल में लौट धरा पर आती हूं!!!!
रचनाएं लिखती जाती हूं——-

सुषमा सिंह *उर्मि,,

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 654 Views
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