विश्वास
लगता है
खीज कर , उब कर , झुंझला कर
भाग जाऊँ
पर मेरा विश्वास
मूझे रोक लेता है
और कहता है
अरे ! ये भागना कैसा ?
यहीं लड़ो , जूंझो संघर्ष करो
नही तो मेरा तुम्हारे साथ
रहना कैसा ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 27/09/91 )
लगता है
खीज कर , उब कर , झुंझला कर
भाग जाऊँ
पर मेरा विश्वास
मूझे रोक लेता है
और कहता है
अरे ! ये भागना कैसा ?
यहीं लड़ो , जूंझो संघर्ष करो
नही तो मेरा तुम्हारे साथ
रहना कैसा ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 27/09/91 )