विश्वास(छंद मुक्त कविता)
पहाड़ से गिरते
झरने के जल सा,
सर पटकता है
चट्टानों पर
मेरा विश्वास।
इस जंगल मे
जानवर ही जानवर हैं
इंसान हो तो सुने
मेरी चीख पुकार।
दर्द मेरे दरवाजे पर
देता है पहरा
जैसे मेरा घर
उसका सनम खाना हो।
जो आता है
बिनबुलाये मेहमान सा
जैसे आके उसे
कभी न जाना हो।
कोई नही बस
वोह ही है खास
प्रश्नों के घेरे में
मेरा विश्वास।।