:विश्वासघात
शब्द:विश्वासघात
माँ के सपनो को किया आज चूर्ण-चूर्ण आज
तो बोलो की ये विश्वासघात नही है, ये हो क्या गया है
हालातों के आगे अब संस्कार देखो बदल गया हैं
कभी माँ के चरणों में जन्नत हुआ करती थी,
पहचान हुआ करती थी माँ के चरणों में
आज बदला बदला सा शहर सारा
अब तो बीबी रखती हैं चरणों मे अपने
माँ के सपनो को किया आज चूर्ण-चूर्ण आज
तो बोलो की ये विश्वासघात नही है, ये हो क्या गया है
लेती है बीबी ख़ामोशी में हर दर्द के मजे वो
वो सिर्फ “माँ” होती है,जो कदमो से उठा मुझे
सीने से लगा लेती थी,पर समय देखो
मेरा ही न जाने क्यो बदला याद आता गुजरा वक्त
अब तो बीबी रखती हैं चरणों मे अपने
माँ के सपनो को किया आज चूर्ण-चूर्ण आज
तो बोलो की ये विश्वासघात नही है, ये हो क्या गया है
मांगने पर भी नही मिलताहै,अब प्यार वो
माँ के पैरों में ही तो वो जन्नत होती थी वो
शब्द खत्म मेरे “माँ”का प्यार लिखते लिखते
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी सी थी पर
अब तो बीबी रखती हैं चरणों मे अपने
माँ के सपनो को किया आज चूर्ण-चूर्ण आज
तो बोलो की ये विश्वासघात नही है, ये हो क्या गया है
तुझ से ही तो जुड़ी थी मेरे दिल की धड़कन,
कहने को तो माँ सब कहते हैं कि जन्नत माँ तेरे पास
अब समय बीबी का है सब अब उसके हैं हाथ
पर मेरे लिए तो है तू भगवन थी अब बदल सा गया हूँ
अब तो बीबी रखती हैं चरणों मे अपने
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद