विवेक
विवेक
विवेक जागता रहे इसे सदा जगाइए।
कभी अनीति भाव को निकट नहीं बुलाइए।
कपट रहे हृदय नहीं सदैव स्वच्छ भावना।
सदैव न्याय मित्रता असत्य की न कामना।
रहे सहर्ष दिव्य वृत्ति काम-क्रोध नष्ट हो।
मनुष्यता अमोल है यही विचार स्पष्ट हो।
विनष्ट द्वेष भाव हो पुनीत नित्य गान हो।
समस्त सृष्टि लोक जीव का सदैव मान हो।
मनोविकार दूर हो समूल स्वस्थ कर्म हो।
सदैव सत्य राज धर्म का विकास मर्म हो।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।