विवेकानंद
मुक्तक
01
हे भारत के जननायक ।
नहीं था कोई सहायक ।
स्वयं आपने दिखलाया ।
हिंद नेतृत्व के लायक ।
02
संयासी का रूप देख ।
खींच ली दूरी की रेख।
सब हो गये थे अचंभित ।
बिन देखे जब पढ़ा लेख।
03
युवा हृदय का सम्बोधन।
छाया ऐसा सम्मोहन ।
श्रेष्ट शिकागो धर्म सभा।
बोल उठी जय मनमोहन ।
04
आध्यात्मिक से समाधान ।
ओज तेज भरी पहचान ।
गूँज उठा शिकागो हाल।
विवेकानंद तुम महान ।।
राजेश कौरव सुमित्र