“”विविध प्यार के रूप””” समरसता गीत!
विविध प्यार के रूप,सारे के सारे ही अनूप।
भरिए अपने दिल का कूप,बनाए सागर सा स्वरूप।।
ऐ – ऐ – इसका उससे,उसका किसी से।
नाता जग में जुड़ा हुआ।।
अपने अपने बन्धन में तो यह।
चहुं ओर से जकड़ा हुआ।।
मन निर्मल ही बना रहे,कभी न बने कुरूप।।
भरिए अपने दिल का कूप,बनाए सागर सा स्वरूप।।
ऐ – ऐ – जिन रिश्तों में आप बंधे हो।
सदा ही उन्हें निभाना।।
बने परिस्थिति चाहे जैसी।
रिश्ते वे तोड़ न जाना।।
अनुनय आती जाती ,जीवन में छांव के संग धूप।।
भरिए अपने दिल का कूप,बनाएं सागर सा स्वरूप।।
राजेश व्यास अनुनय