विवाह के वर्षगाँठ पर
आओ फिर से
नए वर वधू बनके
वह पल छिन जी लें
आओ फिर से
स्मृतियों में
वे विवाह के दिन जी लें
नई-नई
दुल्हन बनके मैं
शर्माई सकुचाई थी
मेरा हाथ थाम के तुमने
अपनी दुनिया दिखाई थी
सच कहती हूँ
वह स्पर्श
बन गया मेरा आत्म बल था
नव जीवन के कठिन डगर पर
केवल वह हीं संबल था
तुमको भी तो मैंने
अपने होने का आभास दिया
तुम ही जानो
मैंने कितना..
अब तक तुम्हारा साथ दिया
फिर दिन बीता
माह गए
और वर्ष भी कितने बीत गए
कुछ सपने मेरे टूटे
कुछ तुम भी मन से रीत गए..
वहन किया दोंनों ने मिलकर उत्तरदायित्वों का बोझ
कभी चुप रहे कभी कह दिया
अपने-अपने मन की सोच
तुम रूठे
मनुहार मेरा था
क्रोध मेरा
और प्रेम तुम्हारा
जीवन की बगिया को हमने
फूलों से मिलजुल के सँवारा
यह तो सच है
मिली वेदना भी थी तुमसे कभी-कभी
यह भी सच है
कहीं कहीं पर मैंने भी
दुःख तुम्हें दिया
सुख का भी कुछ ऐसा ही
हम दोनों में था गणित बना
सब में सबसे अच्छी
फिर भी बात रही
इतने वर्षों तक
अपना ये साथ रहा
🌹🌹❤️🌹🌹