“विवादित साहित्यकार”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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साहित्य की रचना करने वालों को साहित्यकार कहते हैं। अपनी मूल कृतियों को जो साहित्यक आवरण प्रदान करता है उसे साहित्यकार कहते हैं । लेखक ,कवि ,नाटककर ,उपन्यासकर ,गीतकार,व्यंगकार अपने कार्यों को लिखित, ग्राफ़िक, या रिकॉर्डेड प्रारूप देकर ही साहित्यकार की उपाधि ग्रहण करते हैं । समाज में वौद्धिक जागरण और परिवर्तन का शंखनाद इन्हीं से होता है । इनकी लिखनियों से तर्क निकलते हैं ,विचारों का आदान -प्रदान होता है । तर्कों के आधार पर विचारों परंपराओं व मान्यताओं का परीक्षण कर उसे स्वीकार या अस्वीकार करने की प्रवृत्ति विकसित होती है ।
साहित्य विलक्षण होना चाहिए ,कविता मनमोहक हो , नाटक मनोरंजक बने ,गीत अच्छी लिखी जानी चाहिए और व्यंग में भी शालीनता और माधुर्यता का लेप लगा होना चाहिए । साहित्यकारों ने सम्पूर्ण विश्व में पुनर्जागरण और वौद्धिक जागरण से एक नया इतिहास रच दिया । यद्यपि इस प्रक्रिया की शुरुआत यूरोप में हुई तथापि 19वीं-20वीं शताब्दी में भारत में भी सामाजिक-धार्मिक क्षेत्र में इसका अनुभव किया गया। कलम में ताकत होती है ।
आज कल कुछ साहित्यकारों ने अपनी नई दुनियाँ ही बसा ली है । वे राजनीति पूर्वग्रसित होकर अपनी -अपनी साहित्य को दूषित राजनीति के दलदलों में धकेल रहे हैं । परिणामस्वरूप उनकी छवि विवादित बनती जा रही है । डिजिटल युग के आगमन के पश्चात इन गतिविधियों को जानने और समझने का अवसर हर क्षण में मिलता रहता है । जब तक अपनी साहित्य की पूजा सत्यम ,शिवम और सुंदरम के तिलकों से ना करेंगे तब तक हमारी कृतियाँ देद्वीप्त्मान कभी नहीं हो पाएँगी ।
साहित्यकार की श्रेणियों में आने वाले लोगों को निष्पक्ष देखना और सुनना सभी चाहते हैं । आज हम अनेकों लोगों के सान्निध्य में तो आ जाते हैं पर उनके पूर्वग्रसित विवादित विचारों से मर्माहत होकर हम शीघ्र दूर चले जाते हैं । आलोचक साहित्यकार अपनी आलोचनात्मक रचनाओं को तार्किक ,शालीनता ,शिष्टाचार ,मृदुलता से यदि पेश करेंगे तो शायद वे “विवादित साहित्यकार” के उपनाम से अवश्य बच सकेंगे ।
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
13.10.2024