*विरोधाभास*
जिसने जन-कल्याण किया,
जिसने खुलकर दान दिया,
वह अपना सबकुछ खो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जिसने भूखे को खिलाया,
जिसने नंगे को पहनाया,
वह खुद भी भूखा सो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जो गैरों को अपनाए,
ऊंच-नीच का भेद मिटाए,
वह एकाकीपन ढो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जो दुःख औरों का बांटे,
जो राहों से चुन ले कांटे,
वह शूल-शय्या पर सो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जिसने बंजर में फूल खिलाए,
जिसने सहरा में कूप बनाए,
वह प्यास से व्याकुल हो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जो चेहरों पर मुस्कान बिखेरे,
लोग जिसे हरदम हों घेरे,
वह तन्हाई में रो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
जो आशा से भरपूर रहा,
निराशा से कोसों दूर रहा,
वह भी हिम्मत खो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।
प्रेरणा का जो स्रोत रहा,
ऊर्जा से ओत-प्रोत रहा,
वह मिसाल हार की हो सकता है,
कलियुग में यह भी हो सकता है।