“विरोधाभाष”
मत मंसूबे पाल पथिक
सफ़र बड़ा बेढंगा है,
जहाँ फरिस्ते तलक डरते
शैतान वहाँ पर चंगा है।
सड़कों पर फर्राटा दौड़ती
मोटर और कारें नई-नई,
नभ छूती आलीशान हवेलियों में
गूंजती चीखें कई-कई।
एक किनारे बहती जमुना
दूसरे किनारे पर गंगा है,
उसके पुल के ऊपर रहता
पूरा कुनबा भूखा-नंगा है।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य और लेखन के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।