विरह
भो़र भई सांझ ढली
समय ने ली अंगडाई
जग सारा सोया थक कर हारा
पर मोहे निंद न आई।
खोज रही है पिया तोहे मेरी अंखिया।
आऐ न बालम क्या करु सखी।
जब भी कोई आहट होय मन मेरा भागे।
है मतवारी प्रित हमारी
छुपे न छुपायें छुपे न छुपाये।
सावन हो तुम मैं तेरी बदरिया। आऐ न बालम मोरे
क्या करु सखी।